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आपू॑र्णो अस्य क॒लशः॒ स्वाहा॒ सेक्ते॑व॒ कोशं॑ सिसिचे॒ पिब॑ध्यै। समु॑ प्रि॒या आव॑वृत्र॒न्मदा॑य प्रदक्षि॒णिद॒भि सोमा॑स॒ इन्द्र॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āpūrṇo asya kalaśaḥ svāhā sekteva kośaṁ sisice pibadhyai | sam u priyā āvavṛtran madāya pradakṣiṇid abhi somāsa indram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आपू॑र्णः। अ॒स्य॒। क॒लशः॑। स्वाहा॑। सेक्ता॑ऽइव। कोश॑म्। सि॒सि॒चे॒। पिब॑ध्यै। सम्। ऊँ॒ इति॑। प्रि॒याः। आ। अ॒व॒वृ॒त्र॒न्। मदा॑य। प्र॒ऽद॒क्षि॒णित्। अ॒भि। सोमा॑सः। इन्द्र॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:32» मन्त्र:15 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सोमासः) ऐश्वर्य्य से युक्त (प्रियाः) कामना करने योग्य (मदाय) आनन्द के लिये (इन्द्रम्) सूर्य्य को (अभि) सन्मुख (आ) चारों ओर से (अववृत्रन्) घेरते हैं वे (उ) (अस्य) इस संसार के मध्य में (पिबध्यै) पान करने के लिये (सेक्तेव) पूर्ण करनेवाले के तुल्य (कोशम्) मेघ को (सम्) (सिसिचे) सींचते हैं (स्वाहा) सत्य क्रिया से (आपूर्णः) चारों ओर से भरा हुआ (कलशः) घड़ा (प्रदक्षिणित्) दाहिनी ओर चलनेवाले पूर्ण घड़े के तुल्य सुखकारक होता है ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जो लोग धन आदि को प्राप्त हो के औरों के लिये सुपात्र और उत्तम व्यवहार करनेवाले को जानके देते हैं, वे लोग सींचनेवाला घड़े को जैसे वैसे सम्पूर्ण जनों को पूर्ण सुखयुक्त करते हैं ॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

ये सोमासः प्रिया मदायेन्द्रमभ्याववृत्रन् त उ अस्य जगतो मध्ये पिबध्यै सेक्तेव कोशं संसिसिचे स्वाहा आपूर्णः कलशः प्रदक्षिणिदापूर्णः कलश इव सुखकरो जायते ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आपूर्णः) समन्तात् पूरितः (अस्य) (कलशः) कुम्भः (स्वाहा) सत्यया क्रियया (सेक्तेव) पूरकवत् (कोशम्) मेघम्। कोश इति मेघना०। निघं० १। १०। (सिसिचे) सिञ्चति (पिबध्यै) पातुम् (सम्) (उ) (प्रियाः) कमनीयाः (आ) समन्तात् (अववृत्रन्) आवृण्वन्ति (मदाय) आनन्दाय (प्रदक्षिणित्) यः प्रदक्षिणमेति सः। अत्र शकन्ध्वादेराकृतिगणत्वात् पररूपमेकादेशः। (अभि) आभिमुख्ये (सोमासः) ऐश्वर्य्ययुक्ताः (इन्द्रम्) सूर्य्यम् ॥१५॥
भावार्थभाषाः - ये धनादिकं प्राप्यान्येभ्यो यथा सुपात्रं सद्व्यवहारं च विज्ञाय ददति ते सेक्ता कुम्भमिव सर्वान्पूर्णसुखान् कुर्वन्ति ॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक सुपात्र व उत्तम व्यवहार करणाऱ्यांना जाणून इतरांना धन देतात ते सिंचन करणाऱ्या घटाप्रमाणे सर्वांना सुखयुक्त करतात. ॥ १५ ॥